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२. लग्न (विवाह)
आज से सौ सवासौ वर्ष पहले माता-पिता अपनी संतानों का विवाह छोटी उम्र में ही कर देते थे। उसमें भी कन्या की उम्र आठ से दस वर्ष की हो तो उसका विवाह कर ही देते थे फिर कन्या जब वयस्क हो जाती थी तब गौना करके ससुराल भेजी जाती थी। चुनीलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक दिन दोपहर को चुनीलाल की माता लक्ष्मीबहन घर में अकेली ही थी जब किसी ने दरवाजा खटखटाया। उन्होंने देखा कि कोई दो पटेल खड़े थे। अतिथि का स्वागत किया और सत्कार करके पूछा : 'कहीं से आ रहे हैं?' 'कंथरिया गाँव से हम आए हैं, हमारी खेती है। हम देसाईभाई से मिलने विशेष रूप से आए हैं।' 'वे तो खेत पर गये हैं, पर अब आने का समय हो गया है वे आते ही होंगे, क्या कोई खास काम था?'। 'ऐसा कोई खास काम तो नहीं कह सकते, बस लगा - कि उन्हें मिलते जाएं।' बात सुनकर लक्ष्मीबहन को लगा कि आए हैं तो खास काम से, पर - मुझे कहना नहीं चाहते हैं, शायद काम ही ऐसा होगा यह सोचकर वे दूसरी बातें करते रहे। तभी देसाईभाई आ गये। वे उन पटेलों को अच्छी तरह पहचानते थे इसलिये स्वागत करके आने का प्रयोजन पूछने पर उनमें से एक ने कहा, 'देसाईभाई मैं अपनी काशी के लिये तुम्हारे चुनीलाल का रिश्ता माँगने आया हूँ।
'ओ
हो,
ऐसी बात है!
चुनीलाल की माँ
ने वनु के लग्न
के समय काशी को
देखा था। मुझे
उसने कहा भी था
कि,
'लड़की अच्छी है।'
यह तो हमारे मन की बात आपने कह दी।'
इस प्रकार सरलता से बात
पक्की हो गई और
फिर चुनीलाल का
विवाह काशी के साथ हो गया। तब दोनो की उम्र
थी आठ वर्ष! लग्न
क्या होता है उसका पता दोनों
में से किसी को
नहीं था। लग्न
के बाद काशीबहन मायके में रही और चुनीलाल पढ़ाई में लग गये।
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